बैठा हूँ,

अस्तित्व बचाए बैठा हूँ,
बिसात छिपाए बैठा हूँ।
टूटा हुआ एक सितारा हूँ मैं,
तारों के आंधी में,
वजूद का चराग़ जलाएं बैठा हूँ ।

सौप देना हैं खुदको ,
किसी के दस्ते-तलब में।
वक्त की धाराओं में
बहते बहते कहीं;
वस्ल-मिलन ना हो जाएं,
इसलिए भूत और वर्तमान की नदियों से,
भविष्य का समंदर छिपाए बैठा हूँ ।

जुगनू रौशनी के तलब़गार नहीं।
अनाथों को मयस्सर,
माँ बाप का प्यार नहीं।
मुख्तलिफ़ सी पहचान मेरी,
अंधःकार में प्रकाशपुंज सी;
मिल्कियत में चमकने की,
दावेदारी लिए बैठा हूँ ।

दरिया भी वही है,
कश्ती भी वही है।
साहिलों के अह़दे-फ़िराक में,
उम्मीदे जगाएं बैठा हूँ ।

मज़हब की रिवायतें,
इन्सानियत पर हावी ना हो,
ऐतबार-ओ-बेऐतबारी के भंवर में,
कश्ती संभाले बैठा हूँ ।

महकूम सा बन गया था,
वक्त के तकाजों का मैं।
वाकिफ़ जब हुआ;
ख़ल्क-ए-खुदा जो हूँ,
ज़मीं के साथ,
आसमां उठाए बैठा हूँ ।

जिंदा हूँ मैं,
किसीके हर्फ़े-दुआ में।
पतझड़ के मौसम में,
इब़ादत की बहार लिए बैठा हूँ ।

उल़्फत की सबा ने,
छू जो लिया है दहन मेरा,
तेरी चाहत की शब हूँ मैं।
तुझमे समा जाने के खातिर,
सहर से गुफ़्तगु किए बैठा हूँ ।

दस्ते-तलब – In the desiring hands of some.
हर्फ़े-दुआ- words of prayers
ऐतबार-ओ-बेऐतबारी- beliefs and disbeliefs..

~नीरज

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